BJP नेताओं पर मेहरबान योगी सरकार, सांसद समेत कई नेताओं के मुकदमें होंगे वापस

उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार अपने नेताओं पर मेहरबान हो रही है। यही वजह है कि सांसद समेत दस बीजेपी नेताओं के खिलाफ दर्ज 13 मुकदमे वापस लेने के लिए शासन ने जिला प्रशासन और पुलिस से रिपोर्ट मांगी है। प्रदेश सरकार मेरठ हापुड़ लोकसभा क्षेत्र के सांसद राजेंद्र अग्रवाल समेत कई नेताओं पर दर्ज मुकदमे वापस लेने की तैयारी में है।

 

नेताओं ने उठाई थी मुकदमे वापस लेने की मांग

12 बिंदुओं पर डीएम और एसएसपी अपनी रिपोर्ट देंगे, जिसके बाद यह मुकदमे वापस लिए जाएंगे। यह सभी मुकदमे 2006 से 2013 के बीच आठ साल में दर्ज हुए हैं। प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनने के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं ने मांग उठाई थी कि उनके खिलाफ दर्ज हुए मुकदमे वापस लिए जाएं। इसके लिए सभी जिलों से संगठन पदाधिकारियों द्वारा पार्टी नेताओं के खिलाफ दर्ज मुकदमों का विवरण लेते हुए रिपोर्ट तैयार कर हाईकमान को भेजी गई थी। इस रिपोर्ट पर अब कार्रवाई होनी प्रारंभ हो गई है।

 

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प्रथम चरण में बड़े नेताओं के खिलाफ दर्ज मुकदमे वापस लेने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो चुकी है। मेरठ डीएम तथा एसएसपी से इस संबंध में शासन ने दस नेताओं के खिलाफ दर्ज मुकदमों के संबंध में 12 बिन्दुओं पर रिपोर्ट मांगी है। इस रिपोर्ट में मुकदमों की वर्तमान स्थिति और अभी तक हुई कार्रवाई के संबंध में भी जानकारी मांगी गई है। रिपोर्ट तैयार करने में अधिकारी जुटे हैं। माना जा रहा है कि शीघ्र ही यह मुकदमे वापस लिए जाएंगे। बताया जा रहा है कि यह सभी मुकदमे वर्ष 2006 से 13 के बीच दर्ज हुए थे और यह सभी मुकदमे राजनीतिक घटनाक्रमों से जुड़े हैं।

पहले भी वापस होते रहे हैं सत्ताधारियों के मुकदमे

सत्ता धारी नेताओं पर दर्ज मुकदमे पहले भी वापस होते रहे हैं। पहले बसपा और फिर सपा सरकार में कई बार सत्तापक्ष के नेताओं पर दर्ज मुकदमों को वापस करने की सिफारिश की गई है। कई बार तो ऐसा भी हुआ है जब अपराध के गंभीर मामलों में भी सरकार ने मुकदमा वापसी के लिए पत्र लिख दिया। तिहरे हत्याकांड के आरोपी जेल में बंद इजलाल के खिलाफ दर्ज मुकदमों को पिछली सरकार ने वापस करने के लिए पत्र लिखा और कहा कि रिपोर्ट भेजी जाए।

 

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इस पर हंगामा हो गया था और तत्कालीन एसएसपी डीसी दूबे ने स्पष्ट कह दिया था कि इसके पक्ष में शासन को रिपोर्ट भेजी ही नहीं जा सकती है। यह गंभीर अपराध है। रिपोर्ट इंकार में गई और मुकदमा वापस नहीं हुआ। हालांकि समय समय पर लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम या राजनीतिक मामलों में दर्ज मुकदमों को सत्तापक्ष वापस करता है और ऐसे मामलों में रिपोर्ट भी सकारात्मक चली जाती है। इस तरह के मामले पहले भी प्रकाश में आते रहे हैं।

 

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