RBI और केंद्र के बीच की रार रह सकती है बरकरार, अगली बैठक के हंगामेदार होने के आसार

केंद्र सरकार RBI बोर्ड की अगले महीने होने वाली बैठक के दौरान कुछ कमजोर बैंकों के कर्ज देने पर लगी पाबंदियों में ढील देने के साथ ही केंद्रीय बैंक के कामकाज के संचालन के नियमों की समीक्षा का दबाव बना सकती है.

 

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टाइम्स ऑफ इंडिया की ख़बर के अनुसार RBI के बोर्ड में केंद्र सरकार द्वारा नामित सदस्यों के साथ ही अन्य सदस्य उन बैंकों को तथाकथित प्रॉम्प्ट करेक्टिव ऐक्शन की सूची से बाहर निकालने का दबाव बनाएंगे, जिनकी आर्थिक सेहत में सुधार हुआ है. इस सूची में सार्वजनिक क्षेत्र के कुल 11 बैंक शामिल हैं, जिनके कर्ज देने पर RBI ने रोक लगा रखी है.

 

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सरकार के प्रस्तावों से यह साफ जाहिर होता है कि 14 दिसंबर को होने वाली बोर्ड की बैठक हंगामेदार रह सकती है. केंद्रीय वित्त मंत्री और RBI के बीच कई मुद्दों पर टकराव चल रहा है. इन मुद्दों में RBI से सरकार को सरप्लस फंड का ट्रांसफर, बैंकों के कर्ज देने के नियमों में ढील और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) क्षेत्र में नकदी की मात्रा बढ़ाना शामिल हैं. इस महीने की शुरुआत में हुई आरबीआई बोर्ड की बैठक में हालांकि दोनों पक्षों ने सुलह के संकेत दिए थे.

 

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सूत्रों ने कहा कि RBI बैड लोन को लेकर केवल उनके कर्ज देने पर पाबंदी के बजाय इसे रोकने के लिए एक योजना भी लेकर आने वाली है. उन्होंने कहा कि बोर्ड के सदस्य RBI को मॉनिटरी पॉलिसी ट्रांसमिशन सहित कई मुद्दों पर सुपरवाइजरी कंट्रोल बढ़ाने के अलावा, एक प्रॉम्प्ट करेक्टिव प्लान लेकर आने के लिए भी कह सकते हैं.

 

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बीते 25 नवंबर को केंद्रीय आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने कहा कि RBI बोर्ड की आगामी बैठक में केंद्रीय बैंक के गवर्नेंस स्ट्रक्चर में बदलाव पर चर्चा करने की योजना है. गर्ग के बयान के बाद केंद्र और RBI के बीच असंतोष साफ झलक रहा है. गर्ग RBI के बोर्ड में केंद्र सरकार द्वारा नामित सदस्य हैं.

 

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