सपा से गठबंधन के बाद अब ब्राहमणों पर दांव लगाएंगी मायावती, बीजेपी की बढ़ सकती हैं मुश्किलें

2007 यूपी विधानसभा चुनाव में जिस तरह अपनी ‘सोशल इंजीनियरिंग’ थ्योरी के जरिए मायावती ने सीएम की कुर्सी हासिल की थी ठीक उसी तरह से आगामी लोकसभा चुनाव के लिए भी उनकी तैयारी है. दरअसल इस बार फिर से मायावती कई सीटों पर ब्राह्मण कैंडिडेट उतारने का मन बना चुकी हैं. यही कारण है कि अभी तक जितने भी प्रभारी बसपा ने नियुक्त किए हैं उसमें सबसे ज्यादा संख्या ब्राह्मणों की ही है.


सपा के साथ गंठबंधन के बाद 38 सीटों पर चुनाव लड़ रही बसपा अनुसूचित जाति, ब्राह्मण और मुसलामानों को टिकट बंटवारे में भागीदारी देकर बीजेपी और प्रियंका इफ़ेक्ट को कुंद करने की तैयारी में हैं. सूत्रों के मुताबिक, बसपा सुप्रीमो मायावती अपने कोटे के 38 सीटों में से आधी सीटों पर अनुसूचित जाति और ब्राह्मण उम्मीदवारों को टिकट देगी. इसके बाद शेष बचीं सीटें मुस्लिम व अन्य पिछड़ों के खाते में जा सकती है.


दरअसल काफी मंथन के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती इस निष्कर्ष पर पहुंची हैं कि चुनावों में जीत का सही फार्मूला ब्राह्मण-मुस्लिम-दलित (बीएमडी) ही हो सकता है. क्योंकि इसी प्रयोग से वह 2007 में मुख्यमंत्री बनी थी. 2007 विधानसभा चुनाव से पहले मायावती ने ब्राह्मणों को लुभाते हुए नारा दिया था- ‘ब्राह्मण शंख बजाएगा हाथी चलता जाएगा’. इसके बाद उन्हें ब्राह्मण+ दलित+मुस्लिम फैक्टर का काफी लाभ मिला था. इस सोशल इंजीनियरिंग के जरिए वह चुनाव जीतीं. ब्राहम्ण वोट बसपा से दूर हुआ तो बसपा भी सत्ता से गायब हो गई. अब मायावती ने अपना पुराना फॉर्मूला नए गठबंधन में लागू करने का फैसला कर लिया. यूपी की कुल आबादी में लगभग 10 प्रतिशत ब्राह्मण हैं. ऐसे में बसपा अपना पुराना फार्मूला इस चुनाव में लागू करने की तैयारी में है. सपा से हुए गठबंधन के बाद बसपा 38 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी. हर सीट पर जातीय समीकरणों का विशेष ध्यान रखा जाएगा.


इन ब्राह्मण चेहरों की टिकट पक्की


यूपी में बसपा की सीटों पर मायावती की तरफ से जिन उम्मीदवारों के नाम लगभग फाइनल हो चुके हैं, उनमें- अंबेडकरनगर से राकेश पांडे, सीतापुर से नकुल दूबे, खलीलाबाद से कुशल तिवारी, फतेहपुर सीकरी से सीमा उपाध्याय, कैसरगंज से संतोष तिवारी, भदोही से रंगनाथ मिश्रा, प्रतापगढ़ से अशोक तिवारी और मऊ लोकसभा सीट से अजय राय (भूमिहार ब्राह्मण) के नाम शामिल हैं. बताया जा रहा है कि अकेले पूर्वी उत्तर प्रदेश में ही बहुजन समाज पार्टी छह ब्राह्मण चेहरे चुनाव मैदान में उतारेगी. इससे पहले मायावती ने बीते रविवार को अपनी पार्टी के कॉर्डिनेटर्स, जोनल प्रमुख, विधायकों, राज्यसभा सांसदों और पूर्व सांसदों से मुलाकात कर आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर पार्टी की रणनीति के बारे में बताया. मायावती ने अपने तीन घंटे के लंबे भाषण में बीएसपी के संगठन को दो जोन में बांटते हुए, हर तीन डिविजन पर को-ऑर्डिनेटर्स की नियुक्ति की.


जानें क्या है माया की चाल

राजनीतिक जानकारों के मुताबिक़ अनुसूचित जाति-मुसलमानों के अलावा सपा के साथ आने से ओबीसी वोट भी बसपा के खाते में जा सकता है. वहीं ब्राह्मणों को टिकट देने से बसपा को लगता है कि उसे भाजपा और कांग्रेस पर बढ़त हासिल हो सकेगी क्योंकि आमतौर पर ब्राह्मणों का भाजपा या कांग्रेस की ओर रुझान रहता है. उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में ब्राह्मण और ठाकुरों के बीच राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई जग-जाहिर है. हालांकि मोदी लहर में यह लड़ाई कुंद पड़ गई थी, लेकिन मायावती को उम्मीद है कि योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद जिस तरह से ठाकुरों का प्रभाव बढ़ा है ऐसे ब्राह्मणों को अपने पाले में वह लाने में सफल हो सकती हैं. इसी कारण फिर से उनका सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला यूपी के सियासी गलियारों में सुर्खियां बटोर रहा है. अगर मायावती की यह सोशल इंजीनियरिंग सफल रही तो इससे सबसे ज्यादा नुकसान बीजेपी को ही होगा.


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