कांग्रेस को फूटी आँखों नहीं सुहाया प्रणब दा और संघ का साथ, मनीष तिवारी ने सवालों से साधा निशाना

पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस लगातार इस कोशिश में मशगूल थी कि पूर्व राष्ट्रपति और उससे पहले कांग्रेस के बड़े नेता रहे प्रणब मुख़र्जी को नागपुर जाने से रोका जाए। इसके लिए कांग्रेस ने आलोचना से लेकर भावनात्मक हर तरीका अपनाया लेकिन प्रणब मुखर्जी नहीं पसीजे और अब प्रणब मुखर्जी के नागपुर में मुख्यालय जाने को कांग्रेस ने आड़े हाथ लिया है। कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने अपने ट्वीट में प्रणब से 3 सवाल पूंछे हैं। उन्होंने कहा कि प्रणब ने राष्ट्रवाद पर बात करने के लिए संघ मुख्यालय को ही क्यों चुना? आज अचानक से संघ अच्छा कैसे हो गया? 7 जून को प्रणब संघ के दीक्षांत समारोह में शामिल हुए थे। संघ के मंच से उन्होंने राष्ट्रीयता, राष्ट्रवाद और देशभक्ति पर अपनी बात रखी। करीब 30 मिनट के भाषण के दौरान उन्होंने महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, लोकमान्य तिलक, सुरेंद्र नाथ बैनर्जी और सरदार पटेल का जिक्र किया।

जाने कांग्रेस नेता मनीष तिवारी पूंछे हैं कौन से सवाल –

पहला सवाल

मनीष तिवारी ने प्रणब से पूछा, “आपने अभी तक धर्म निरपेक्ष लोगों को कोई जवाब नहीं दिया है। मैं पूछना चाहता हूं कि आपने राष्ट्रवाद पर अपनी बात रखने के लिए आरएसएस मुख्यालय को ही क्यों चुना?

दूसरा सवाल

Congress Leader Manish Tiwari

आपकी पीढ़ी ने 80 और 90 के दशक में आरएसएस की सोच को लेकर चेतावनियां दी थीं। जब 1975 और फिर 1992 में आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया था, तब आप उस वक्त सरकार का हिस्सा थे। क्या आपको नहीं लगता कि कभी गलत सोच रखने वाला संघ आज अच्छा कैसे हो गया। या फिर हम जो पहले कहते रहे वो गलत था या ये उधार लिया गया सम्मान है?

तीसरा सवाल

आरएसएस के कार्यक्रम में आपका शामिल होना वैचारिक पुनरुत्थान की कोशिश है या फिर राजनीति में आ रही गिरावट को दूर करना। क्या ऐसा करके क्या आप कड़वाहट दूर करना चाहते हैं? क्या आपकी कोशिश से आरएसएस को धर्मनिरपेक्ष और बहुलतावादी मान लिया जाएगा?

मनीष तिवारी ने एक उदाहरण भी दिया, जानें क्या है यह उदाहरण

मनीष ने एक उदाहरण भी दिया, “इतिहास बताता है कि जब नाजी यूरोप में अपनी अकड़ दिखा रहे थे। चेंबरलेन (पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री) ने सोचा कि 1938 के म्यूनिख पैक्ट से उन्होंने अपने दौर में शांति को लेकर सबसे बड़ा काम किया है। कितनी गलत साबित हुई थी उनकी सोच।