सुप्रीम कोर्ट ने याद दिलाया फिर भी बीजेपी ने नहीं बताया- इलेक्टोरल बॉन्ड से मिला कितना पैसा

सुप्रीम कोर्ट ने सभी राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड्स (electoral bonds) के जरिए मिलने वाली चंदे की जानकारी 30 मई तक चुनाव आयोग से साझा करने की डेडलाइन दी थी। लेकिन भाजपा और कांग्रेस जैसी बड़ी राजनीतिक पार्टियां ऐसा करने में नाकाम रहीं। ऐसा तब जब चुनाव आयोग ने बीते हफ्ते सभी पार्टियों को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बारे में याद भी दिलाया था। वहीं, कांग्रेस और बीजेपी में तुलना करें तो इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए मिलने वाले चंदे की रकम का बड़ा हिस्सा सत्ताधारी पार्टी के पास ही गया है।


चुनाव आयोग को जानकारी सौंपने का कोर्ट ने दिया था निर्देश

हालांकि, यह साफ नहीं है कि चुनाव आयोग बीजेपी को दोबारा से इस बारे में लिखेगा या फिर जानकारी साझा न करने वाली पार्टियों के बारे में सुप्रीम कोर्ट को जानकारी भर दे देगा। जानकारी के मुताबिक, अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने सभी पार्टियों को निर्देश दिया था कि वे इलेक्टोरल बॉन्ड्स की रसीदों और चंदा देने वाले लोगों की पहचान का ब्योरा सीलबंद लिफाफे में इलेक्शन कमिशन को सौंपे।


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यह आदेश चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने दिया था। एक एनजीओ की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश दिया था। याचिका में इलेक्टोरल बॉन्ड्स की वैधता को चुनौती दी गई थी। याचिका में मांग की गई थी कि या तो इलेक्टोरल बॉन्ड्स को कैंसल किया जाए या फिर चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता को बरकरार रखने के मद्देनजर चंदा देने वाले लोगों के नाम सार्वजनिक किए जाएं।


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जहां तक इलेक्टोरल बॉन्ड्स का सवाल है, केंद्र सरकार ने इस योजना को 2 जनवरी 2018 को अधिसूचित किया था। नियमों के मुताबिक, कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी इन बॉन्ड्स को खरीद सकती है। हालांकि, इन बॉन्ड्स के जरिए वे ही राजनीतिक दल चंदा हासिल कर सकेंगे, जिन्हें पिछले चुनावों में कम से कम 1 पर्सेंट वोट मिले हों। केंद्र सरकार ने इस बॉन्ड्स का समर्थन करते हुए अदालत में कहा था कि इनका मकसद चुनाव में कालेधन के इस्तेमाल पर रोक लगाना है।


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