कमलनाथ ने दिया किसानों को धोखा, 90 हजार किसानों की नहीं होगी कर्जमाफी

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनते ही कमलनाथ ने जब अपना कार्यभार संभाला था तो उन्होंने अपना सबसे पहला काम किसानों की कर्जमाफी वाली फाइल पर हस्ताक्षर करके किसानों की कर्जमाफी की बात कही थी. लेकिन, यहां पर कमलनाथ की ये बात पूर्णतया रूप से सही साबित होती नहीं दिख रही है. आपको बता दे कि मध्य प्रदेश सरकार ने किसानों की कर्जमाफी का जो तोहफा किसानों को दिया है, उस कर्जमाफी के तोहफे से मध्य प्रदेश के 90 हजार किसान वंचित रहेंगे और इन किसानों को खुद अपना कर्ज चुकाना होगा अन्यथा अपनी जमीन गिरवी रखनी पड़ेगी. सरकार ने अल्पावधि कृषि ऋण माफ करने का फैसला किया है. जबकि इन किसानों ने टर्म लोन (मध्यावधि या दीर्घावधि) लिया है यानि उपकरण खरीदने से लेकर अन्य कामों के लिए कर्ज उठाया है. 30 जून 2018 की स्थिति में इन किसानों के ऊपर 38 जिला सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों का लगभग दो हजार करोड़ रुपये का कर्ज है.

 

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विदिशा के किसानों पर सबसे ज्यादा कर्ज, खुद कर्जदार हुए बैंक

जिला सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक की कर्ज की स्थिति को देखा जाए तो पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की राजनीतिक कर्मभूमि रहे विदिशा के सवा 8 हजार से भी ज्यादा किसानों पर 208 करोड़ रुपये का कर्ज बकाया हैं. भिंड के 4 हजार 900 किसानों पर 137 करोड़, सागर के साढ़े 4 हजार किसानों पर 45 करोड़, सीहोर के साढ़े 3 हज़ार से ज्यादा किसानों पर 110 करोड़ और छिंदवाड़ा के डेढ़ हजार किसानों पर 35 करोड़ रुपये का कर्ज है. सबसे कम 17 करोड़ रुपये टीकमगढ़ के 900 किसानों से लेना है. कर्ज अदायगी न होने से हालत ऐसी हो गई है कि जो बैंक दूसरों को कर्ज देते थे वे खुद कर्जदार हो गए और इसका बोझ इतना बढ़ गया है कि सरकार को इन्हें बंद करने का फैसला करना पड़ रहा है. सहकारिता विभाग के प्रमुख सचिव के.सी. गुप्ता ने कहा- ‘कर्जमाफी के आदेश अल्पावधि कृषि ऋण के लिए हैं. प्रदेश में किसानों को खेती के लिए जिला सहकारी केंद्रीय बैंकों के अलावा जिला सहकारी कृषिष और ग्रामीण विकास बैंक कर्ज देते थे. 2009 तक बैंक ने राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक से कर्ज लेकर किसानों को खूब कर्ज बांटा.

 

बैंक ने कर्ज देना बंद किये और वसूली जारी रखी

2009 के लोकसभा चुनाव के समय से किसानों ने कर्जमाफी की आस में कर्ज चुकाना बंद कर दिया. यूपीए सरकार की कर्जमाफी और राहत योजना आई तो हजारों किसानों के कर्ज माफ हो गए तो कुछ को राहत राशि भी मिली और इसके बावजूद भी बैंक कभी पटरी पर नहीं आ पाया. बैंक ने कर्ज देना बंद कर दिया पर वसूली जारी रखी. इसके लिए समय-समय पर एकमुश्त समझौता योजना भी लागू की गई. यह योजना ‘मूलधन चुकाओ और ब्याज माफ कराओ’ थी. हालांकि, इसका भी कोई खास असर नहीं हुआ. बैंकों का 1 लाख 8 हजार किसानों के ऊपर साढ़े 3 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा कर्ज निकल रहा है. अब बैंको के लिए वेतन बांटना और अन्य खर्च जुटाना भी मुश्किल हो गया. इसमें 2 या 3 किस्त में मूलधन चुकाने पर ब्याज माफ करने का ऑफर दिया गया. 96 हजार किसानों ने संकल्प पत्र भरकर दिया कि वे योजना में शामिल होंगे पर यह वादा कोरा साबित हुआ. सहकारिता विभाग के अधिकारियों का कहना है कि किसानों की 1 लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन बैंकों के पास गिरवी रखी हैं. वे दूसरे किसी बैंक से कर्ज भी नहीं ले सकते हैं.

 

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राहुल गांधी की कर्जमाफी घोषणा का फायदा 18 हजार किसानों को मिला

ब्याज माफी जैसी आकर्षक योजना होने के बावजूद लगभग 18 हजार किसानों ने ही कर्ज चुकाकर ब्याज माफी का लाभ लिया. इन किसानों को उम्मीद थी कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा की गयी कर्जमाफी की घोषणा का फायदा उन्हें भी मिलेगा पर ऐसा नहीं होगा. एक तो सरकार का फैसला कृषि ऋण से जुड़ा है और इन किसानों ने मध्यावधि या दीर्घावधि के लिए टर्म लोन यानि कृषि से जुड़े दूसरे कामों के लिए कर्ज लिया.

उधर, बैंकों को बंद करने का निर्णय भी सरकार कर चुकी है, जिसकी प्रक्रिया भी शुरू हो गई है. अब इन किसानों को कर्ज चुकाना ही होगा वरना कड़ी कार्रवाई भी हो सकती है क्योंकि बैंक का कर्ज चुकाने की गारंटी राज्य सरकार ने नाबार्ड को दी है. नाबार्ड की उधारी 880 करोड़ रुपये से ज्यादा है.

 

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