मिलिए ‘भाजपा के चाणक्य’ सुनील बंसल से, यूं हीं नहीं कहे जाते ‘सिंपली ब्रिलियंट’

राजनीति अगर शतरंज की बिसात है तो सुनील बंसल उसके बाजीगर, हारी हुई बाजी कब जीत में बदल जाये यह विरोधियों को भी हार जानें के बाद ही पता चल पाता. यूपी बीजेपी के संगठन महामंत्री सुनील बंसल यूं ही चाणक्य नहीं कहलाते बात व्यूह संरचना की हो या फिर सूझबूझ की बंसल सभी कसौटियों पर खरे उतरते हैं.

 

जानें कौन हैं सुनील बसंल

20 सितंबर सन 1969 को राजस्थान में जन्में सुनील बंसल बेहद सामान्य पृष्ठभूमि से आते हैं. बंसल का संघ और भाजपा से बचपन से ही जुड़ाव रहा है. बंसल का राजनीतिक सफ़र आसान नहीं रहा. अपने छात्र जीवन में इन्होने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़कर राजनीति का ककहरा सीखा.

 

बात सन 1989 की है राजस्थान विश्वविद्यालय में छात्र चुनाव चल रहा था इस चुनाव में एबीवीपी ने कई धुरंदरों को पीछे करके उभरते हुए युवा सुनील बंसल को उतारा. बेहद कड़े मुकाबले में सुनील बंसल ने एबीवीपी को जीत दिलाई और राष्ट्रीय महासचिव चुने गए. यहां से शुरू होता है सुनील बंसल का राजनीतिक सफ़र इसके बाद इन्होने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

 

करीबियों की नजर में सुनील बंसल 

सुनील बंसल के करीबियों की मानें तो बसंल बेहद शांत, खुशमिजाज और मिलनसार व्यक्ति हैं. बंसल अपनी सरलता और सहजता के लिए जानें जाते हैं. इन्हीं चारित्रिक गुणों के कारण ये ‘सिम्पली ब्रिलियंट’ भी कहे जाते हैं. बंसल को टीवी सीरियल ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ तथा फुर्सत में फ़िल्में देखना पसंद है.

 

2014 लोकसभा और 2017 यूपी चुनाव में योगदान 

सुनील बंसल को लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में अमित शाह के सहयोगी के रूप में लाया गया था. तभी ऐसे संकेत मिलने लगे थे कि बंसल के जरिये संघ यूपी में मिशन मोदी को आगे बढ़ाएगा. उन्होंने यूपी के पंचायत चुनाव में जमीनी स्तर पर काम किया. यूपी चुनाव में बूथ मैनेजमेंट से लेकर अलग-अलग कैंपेन के जरिए पांच करोड़ से ज्यादा लोगों को जोड़ने की रणनीति पर काम किया. उन्होंने एक तरफ प्रदेश की ‘विभाजित’ भाजपा को जोड़ने की मुश्किल मुहिम शुरू की और दूसरी तरफ ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा के बूथ प्रभारियों का चयन भी करते रहे. अमित शाह के समर्थन से बंसल ने बूथ स्तर से लेकर प्रदेश संगठन में ओबीसी, एमबीसी और दलित समुदायों में से कम से कम 1,000 नए कार्यकर्ताओं को नियुक्त किया. चुनाव के दौरान हर बूथ पर औसतन 10 कार्यकर्ता रहे. जातीय समीकरणों के आधार पर बंसल ने प्रत्याशियों के बारे में सर्वे कर आलाकमान को रिपोर्ट सौंपी, उसके बाद ही उनके टिकट फाइनल हुए. जिसका परिणाम हुआ कि 2014 आम चुनाव में भाजपा को यूपी में 80 में से 73 मिली.

 

पहली कसौटी पर खरा उतरने के बाद संघ ने उन्हें महामंत्री संगठन बनाकर परोक्ष रूप से बीजेपी संगठन की पूरी बागडोर सौंप दी. एक ओर जहां यूपी विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने प्रशांत किशोर का हाथ थामा, वहीं बंसल ने कार्यकर्ताओं के भरोसे ही यूपी चुनाव लड़ने का फैसला किया. युवाओं से सीधा जुड़ने के लिए बीजेपी की सोशल मीडिया टीम पर खास नजर रखने वाले बंसल ने न सिर्फ यूपी में जातीय समीकरणों को बेहद नजदीकी से समझा बल्कि बूथ लेवल तक दलित, ओबीसी और महिलाओं से कार्यकर्ताओं को सीधे तौर पर जुड़ने को कहा. बंसल की इसी रणनीति का नतीजा था कि बीजेपी की यूपी में 2 करोड़ से ज्यादा सदस्यता हुई.

 

बंसल के आगे सबसे बड़ी चुनौती बीजेपी की ‘शहरी पार्टी’ की छवि को खत्म करना था. इसी के तहत उन्होंने यूपी के प्रभारी ओम माथुर के साथ मिलकर पार्टी के टिकट पर पंचायत चुनाव लड़वाने की योजना बनाई. बंसल ने एक लाख बीस हजार बूथों का डाटा इकट्ठा कराया जिसका उपयोग उन्होंने हर विधानसभा में जीत के समीकरण बनाने में किया. इस डाटा से प्रत्याशियों को भी अपनी रणनीति बनाने में सहायता हुई. बंसल ने टिकट वितरण में भी ऐसी सूझबूझ दिखाई कि पार्टी को कहीं भी विरोध का सामना नहीं करना पड़ा. बंसल के कुशल नेतृत्व की बदौलत भाजपा ने 2017 यूपी विधानसभा चुनाव में अकेले 312 सीटें तथा गठबंधन ने 325 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया.

 

2019 फतह के लिए बंसल की योजना 

बीजेपी के संगठन महामंत्री सुनील बंसल 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा को जीत दिलाने के लिए इन दिनों दिन रात युद्धस्तर पर काम कर रहे हैं. जमीनी स्तर के कार्यकर्ता हों या सोशल मीडिया के सभी के पेंच कसने में बंसल कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं. मोदी सरकार की उपलब्धियों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया को अहम मानते हुए जिले की कार्यकारिणी में एक सोशल मीडिया के सदस्य को जगह दे रहे हैं.

 

सुनील बंसल की योजना में आईटी की विशेष भूमिका है. बंसल की योजना के अनुसार प्रदेश में करीब 3 करोड़ मतदाता केंद्र और प्रदेश सरकार की विभिन्न योजनाओं के लाभार्थी हैं. प्रत्येक कार्यकर्ता कम से कम 50 लाभर्थियों के घर जायेगा और उनका हालचाल लेने के बाद लाभ वाली योजना के साथ ‘सेल्फी विद बेनिफिसरी’ हैशटैग के साथ भेजेगा. यह अभियान 15 दिसम्बर से 30 दिसम्बर के बीच चलाया जाएगा. बतौर बंसल युवाओं के कौशल का विकास और उन्हें बहुपयोगी जानकारी प्राप्त कराने के लिए सोशल मीडिया पर प्रदेश स्तर पर नमो एप प्रतियोगिता का आयोजन किया जाएगा इतना ही नहीं इसी को आधार बनाकर प्रदेश के सभी जिलों में इसका आयोजन कराया जाएगा.

 

बंसल की रणनीति के मुताबिक नमो एप से लोगों को जोड़ने के लिए विधानसभा क्षेत्र स्तर पर बैठकें की जाएंगी. पार्टी के सेक्टर स्तर का अलग व्हाटसएप ग्रुप बनायें जायेंगे, वहां विधानसभा स्तर के माध्यम से जिला स्तर के ग्रुप और जिले का ग्रुप प्रदेश के ग्रुप से जुड़ेगा. पार्टी अध्यक्ष यदि कोई संदेश देते हैं तो वह एक घंटे में सबसे निचले स्तर के कार्यकर्ता के पास पहुंच जाएगा. भाजपा के बड़े नेताओं को बूथ स्तर तक पहुँचाने के लिए बंसल ‘कमल संदेश बाइक रैली’ का आयोजन कराने जा रहे हैं.

 

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