मिलिए ‘राजनीति के कुरुक्षेत्र’ में भाजपा को सत्ता दिलाने वाले ‘केशव’ से, जानें अख़बार बेंचने से लेकर डिप्टी सीएम तक का सफ़र

बात है 2016 की, उत्तर प्रदेश की तत्कालीन अखिलेश सरकार यादवों को जोड़ने में जुटी थी तो बसपा सुप्रीमों मायावती अपने परंपरागत वोट बैंक पर ही दांव खेलती दिख रहीं थी, वहीं 16 साल से सत्ता का वनवास झेल रही भाजपा जातीय समीकरण साधने में नाकाम दिख रही थी. इसी बीच 8 अप्रैल 2016 को खबर आई कि भाजपा ने अपना प्रदेश अध्यक्ष बदल दिया अब लक्ष्मीकांत बाजपेई की जगह लेंगे ‘केशव प्रसाद मौर्य’. केशव उस दौरान फूलपुर से सांसद थे लेकिन वो पहला दिन था जब केशव प्रसाद मौर्य का नाम राष्ट्र स्तर पर गूंजा. आइये जानते हैं व्यूह संरचना से सामने खड़ी विशाल सेना को परास्त करने वाले ‘केशव’….गैर यादव पिछड़ों को एकजुट अखंड करने वाले ‘मौर्य’ का जीवन सफ़र.

 

बेहद कठिनाइयों से भरा रहा बचपन

केशव प्रसाद मौर्य का जन्म 7 मई सन 1969 में तत्कालीन इलाहाबाद( आज कौशाम्बी) के सिराथू कस्बे में एक बेहद गरीब परिवार में हुआ. तीन भाइयों में केशव दूसरे नंबर पर थे. उनके पिता तहसील कैम्पस तो कभी रेलवे स्टेशन के बाहर फुटपाथ पर चाय का ठेला लगाते थे. केशव और उनके बड़े भाई भी बचपन से ही पिता के काम में हाथ बंटाया करते थे

 

चाय और अख़बार भी बेंचा 

पैसों की तंगी के चलते पढ़ाई के लिए पैसे नहीं मिले तो दिन भर चाय के ठेले पर वक्त बिताने वाले केशव ने सुबह अखबार बेचना शुरू कर दिया. केशव की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा गाँव में ही हुई. केशव की चाय की दुकान पर आरएसएस और विश्व हिन्दू परिषद के लोग चाय पीने आते थे उनकी आपस में वार्तालाप से केशव उस विचारधारा की ओर बाल्यकाल में ही आकर्षित हो गए और मात्र 14 वर्ष की आयु में घर छोड़ दिया.

 

14 साल की उम्र में छोड़ दिया था घर 

केशव पर आरएसएस की शाखा से जुडने और हिंदुत्व का रंग ऐसा चढ़ा कि 14 वर्ष की उमर में घर- बार छोड़ दिया और इलाहाबाद आकर अशोक सिंघल की सेवा में जुट गए. केशव ने सिंघल के सानिध्य में ही राजनीति का ककहरा सीखा. सिंघल के घर संगठन के काम में हाथ बंटाने वाले केशव जल्द ही उनके चहेते बन गए. वह आधे वक्त पढ़ाई करते थे और आधे वक्त वीएचपी दफ्तर में लोगों की सेवा करते थे.

 

करीब 12 सालों तक वह न तो घर गए और न ही परिवार से कोई रिश्ता रखा. बाद में सिंघल के कहने पर बहन की शादी में शामिल हुए और घर वालों से दोबारा नाता जोड़ लिया. गरीबी और संघर्ष के बीच केशव राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े और जमीनी स्तर पर खूब संघर्ष किया.

 

मौर्य ने श्रीराम जन्म भूमि और गोरक्षा व हिन्दू हित से जुड़े अनेक आन्दोलनों में भी सक्रिय भूमिका निभाई और इसके लिए जेल जाने से भी पीछे नहीं हटे. भाजपा को राजनीति में मुकाम देने वाले अयोध्या आंदोलन के दौरान आगे बढ़कर मोर्चा संभालने वालों में केशव प्रसाद मौर्य भी शामिल थे. कार सेवा के दौरान वह विवादित ढांचे के गुंबद पर चढ़ गए थे. उनके साथ कार सेवा के लिए अयोध्या जाने वाले अवकाश प्राप्त खेल प्रशिक्षक आरएन सिंह बताते हैं “अयोध्या आंदोलन के दौरान केशव ट्रेन में सवार होकर अयोध्या तक गए थे. रेलवे स्टेशन पर टीटीई ने रेलगाड़ी का दरवाजा बंद कर दिया था. इससे कार सेवक ट्रेन से बाहर नहीं निकल पा रहे थे तब केशव ने ही टीटीई से चाभी छीनकर गेट खोला था.

 

2002 से शुरू हुआ राजनीतिक सफ़र 

विश्व हिंदू परिषद् के कार्यकर्ता के रूप में केशव 18 साल तक गंगापार और यमुनापार में प्रचारक रहे. साल 2002 में शहर पश्चिमी विधानसभा सीट से उन्होंने भाजपा प्रत्याशी के रूप में राजनीतिक सफर शुरू किया लेकिन इस चुनाव में  उन्हें बसपा प्रत्याशी राजू पाल के हाथों हार का सामना करना पड़ा था. इसके बाद साल 2007 के चुनाव में उन्होंने इसी विधानसभा क्षेत्र से फिर चुनाव लड़ा लेकिन इस बार भी उन्हें जीत हासिल नहीं हुई.  साल 2012 में केशव कौशाम्बी की सिराथू सीट से चुनाव लड़े और समाजवादी लहर होने के बावजूद भी जीत गए. इस दौरान उन्होंने कई आंदोलन खड़े किये और सड़कों पर खूब संघर्ष किया. 2014 के लोकसभा में फूलपुर से टिकट पाने के लिए काफी जद्दोजेहद करनी पड़ी. कई दिग्गज नेताओं को दरकिनार कर पार्टी ने उन पर जो भरोसा जताया उस पर वह न केवल पूरी तरह खरे उतरे, बल्कि पांच लाख से ज्यादा वोट पाए और तीन लाख से ज्यादा की जीत हासिल कर नया इतिहास भी रच डाला. केशव ने फूलपुर सीट पर पहली बार बीजेपी को जीत दिलाई.

 

2016 में बनाये गए यूपी बीजेपी अध्यक्ष

यूँ तो 2016 तक केशव प्रसाद मौर्य राजनीति में बहुत मुकाम पा चुके थे लेकिन अप्रैल 2016 में केशव का यूपी बीजेपी का अध्यक्ष बनाया जाना उनके राजनीतिक कैरियर में गेमचेंजर साबित हुआ. जितना बड़ा पद उतनी ही बड़ी जिम्मेदारी. केशव के कंधों पर उस बीजेपी को सत्ता में वापसी कराने की जिम्मेदारी थी जो पिछले 16 साल से सत्ता का वनवास झेल रही थी.

 

जातीय समीकरण साधने की चुनौती 

केशव के सामने सबसे बड़ी चुनौती जातीय समीकरण को साधने की थी, एक ओर अखिलेश यादव अपने यादव वोटबैंक को मजबूत करने में जुटे थे तो वहीं दूसरी ओर मायावती अपने परंपरागत वोट बैंक पर दांव खेल रहीं थी. केशव को पता था कि भाजपा केवल सवर्ण वोटों की दम पर यूपी की सत्ता नहीं पा सकती इसलिए केशव ने गैर यादव पिछड़ों को साधने की कार्ययोजना बनाकर युद्धस्तर पर जुटकर पार्टी के लिए धुआंधार प्रचार किया. चुनाव में केशव अच्छे वक्ता साबित हुए और उन्होंने पार्टी के लिए सबसे ज्यादा 155 चुनावी सभाएं की.

 

केशव ने न सिर्फ यूपी में जातीय समीकरणों को बेहद नजदीकी से समझा बल्कि बूथ लेवल तक दलित, ओबीसी और महिलाओं से कार्यकर्ताओं को सीधे तौर पर जुड़ने को कहा. केशव ने टिकट वितरण में भी ऐसी सूझबूझ दिखाई कि पार्टी को कहीं भी विरोध का सामना नहीं करना पड़ा. केशव के कुशल नेतृत्व की बदौलत भाजपा ने 2017 यूपी विधानसभा चुनाव में अकेले 312 सीटें तथा गठबंधन ने 325 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया. इस बड़ी जीत के नायक रहे केशव प्रसाद मौर्य को भाजपा ने उपमुख्यमंत्री बनाया. सरकार में उन्हें सबसे अहम माने जाने वाला लोक कल्याण विभाग दिया गया. केशव ने पद संभालते ही विभाग में फैले भ्रष्टाचार को खत्म करने और पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से ‘ई टेंडर’ लागू किया. केशव ने प्रदेश की सड़कों को गड्ढा मुक्त करने जैसे अनेक अभूतपूर्व कार्य किये. केशव प्रसाद मौर्य को इन दिनों भाजपा ने सांसदों का रिपोर्ट कार्ड बनाने की जिम्मेदारी दी है.

 

Also Read: मिलिए ‘भाजपा के चाणक्य’ सुनील बंसल से, यूं हीं नहीं कहे जाते ‘सिंपली ब्रिलियंट’

 

( देश और दुनिया की खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें, आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं. )