MP में 75 फ़ीसदी वोटिंग पर विश्लेषण: जारी रहेगा शिवराज का राज, ख़त्म होता नहीं दिख रहा कांग्रेस का वनवाश

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार रिकॉर्ड 75 प्रतिशत मतदान हुआ है. प्रदेश के इतिहास में अबतक की सबसे बड़ी वोटिंग के बाद दावे भी खूब हो रहे हैं. बीजेपी की तरफ से एक बार फिर शिवराज का दावा किया जा रहा है. पार्टी का तर्क है कि अधिक मतदान से फायदा उसे ही होगा. दूसरी तरफ, 15 सालों से सत्ता से वनवास झेल रही कांग्रेस को लग रहा है कि अबकी बार कुछ परिवर्तन होगा. इस बार सत्ता में आने की आस लगाए बैठी कांग्रेस भारी मतदान को शिवराज सरकार के खिलाफ नाराजगी का नतीजा बता रही है.

 

कांग्रेस और बीजेपी दोनों की तरफ से कई दावे किए जा रहे हैं. लेकिन, उन दावों की सच्चाई का पता लगाने के लिए हमें पिछले कई सालों के वोटिंग प्रतिशत को जानना होगा. 1998 में जब कांग्रेस की सरकार बनी थी तो उस वक्त 60.72 प्रतिशत वोटिंग हुई थी. उस वक्त मध्यप्रदेश से अलग छत्तीसगढ़ राज्य नहीं बना था. लेकिन, उसके बाद 2003 में मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में 67.25 फीसदी वोटिंग हुई थी. मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद यह प्रदेश का पहला चुनाव था. 1998 के मुकाबले सात फीसदी अधिक वोटिंग का सीधा फायदा बीजेपी को मिला. जिसके बाद कांग्रेस की दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली सरकार का सफाया हो गया.

 

उस वक्त बीजेपी की सरकार बनी, जिसका नेतृत्व उमा भारती ने किया. बाद में उनकी जगह बाबूलाल गौर और नवंबर 2005 में शिवराज सिंह चौहान को यह जिम्मेदारी दी गई थी. उस वक्त से लेकर अब तक शिवराज सिंह मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हैं. 2003 में वोटिंग प्रतिशत बढ़ने का सीधा फायदा बीजेपी को हुआ. क्योंकि इसे लोगों का सत्ता विरोधी रुझान माना गया.

 

उस वक्त बीजेपी को 173 जबकि कांग्रेस को 38 सीटों पर जीत मिल सकी थी. इसके पांच साल बाद 2008 के विधानसभा चुनाव में भी वोटिंग प्रतिशत लगभग 2 फीसदी बढ़ा लेकिन फायदा बीजेपी को ही रहा. 2008 में 69.28 फीसदी वोटिंग होने के बाद बीजेपी के खाते में 143 और कांग्रेस के खाते में 71 सीटें आई थीं.

 

फिर 2013 में भी वोटिंग प्रतिशत 2 फीसदी के लगभग बढ़कर 72.07 फीसदी तक पहुंच गया, उस वक्त भी फायदा सत्ताधारी बीजेपी को ही हुआ. बीजेपी ने 165 जबकि कांग्रेस महज 58 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई. इस बार भी अधिक मतदान का फायदा सीधे बीजेपी को ही मिला. अब एक बार फिर 2018 में 75 फीसदी मतदान हुआ है जो कि पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले तीन फीसदी ज्यादा है.

 

आंकड़ों के हिसाब से बीजेपी फिर दावा कर रही है. पार्टी को लगता है कि यह एंटीइंकंबेंसी का प्रभाव नहीं है, बल्कि बीजेपी का वोटर अधिक तादाद में मतदान-केंद्र तक पहुंचा है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने फिर से शानदार जीत का दावा किया है. बीजेपी के रणनीतिकारों को लगता है कि बीजेपी के बूथ लेवेल के कार्यकर्ताओं की मेहनत और पार्टी का माइक्रो मैनेजमेंट कारगर रहा है, जिससे बीजेपी का वोटर अधिक तादाद में मतदान-केंद्र तक पहुंचा है. बीजेपी नेताओं का दावा है कि इस बार भी मध्य प्रदेश में बीजपी की ही सरकार बनेगी.

 

बीजेपी खासतौर पर प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना, किसानों के लिए भावांतर योजना और मजदूरों के लिए चलाई गई संबल योजना को अधिक वोटिंग का कारण बता रही है. बीजेपी का दावा है कि समाज के हर तबके के लिए शिवराज सिंह चौहान ने काम किया है जिसके कारण लोगों ने मतदान किया है. दूसरी तरफ, बीजेपी अपने वोटरों को मतदान-केंद्र तक ले जाने में सफल रही है.

 

दावे कई हैं, लेकिन पिछले आंकड़े देखें, सीएम शिवराज के काम और बीजेपी के बूथ स्तर का मैनेजमेंट को देखकर हम यही कह सकते हैं कांग्रेस का सत्ता का वनवाश फिलहाल अगले 5 साल तक तो खत्म होता नहीं दिख रहा है.

 

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